राष्ट्रीय चेतना का उद्घोष : अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण – 13
प्राणोत्सर्ग करने का दृढ़ संकल्प
मंदिर पर लगा सरकारी ताला खुलने के बाद सभी हिन्दू संगठनों ने इस स्थान पर एक भव्य मंदिर बनाने के लिए प्रयास शुरु कर दिए. इस कालखंड में निरंतर 6 वर्षों के इंतजार के बाद सरकार भी टालमटोल करती रही और न्यायालय भी इस मुद्दे को लटकाता रहा. निरंतर 6-7 वर्षों के इंतजार के बाद विश्व हिन्दू परिषद के मार्गदर्शक मंडल के सभी संतों महात्माओं ने सर्वसम्मति के साथ एक स्वर में 6 दिसम्बर 1992 को कारसेवा करने की घोषणा कर दी. संतों की यह घोषणा समस्त हिन्दू समाज की सिंह गर्जना थी. सारे देश में जनजागरण की दृष्टि से देशव्यापी चरण पादुका पूजन का विस्तृत अभियान प्रारम्भ कर दिया गया. फैजाबाद क्षेत्र में स्थित नंदीग्राम में 28 सितम्बर को 12 हजार चरण पादुकाओं का धार्मिक अनुष्ठान के साथ पूजन किया गया.
सारे देश से विश्व हिन्दू परिषद के लगभग 400 विभाग अधिकारी चरणपादुका लेने अयोध्या पहुंचे. देश के कोने-कोने में इन चरणपादुकाओं का भव्य स्वागत हुआ. योजनानुसार गांव-गांव में चरणपादुकाएं पहुंचीं. भारत के 5 लाख गांवों में इनका विधिवत पूजन हुआ. संतों ने भजन कीर्तन, शोभायात्राओं, जनसभाओं और प्रभात फेरियों के माध्यम से प्रचंड जनसंपर्क किया. प्रत्येक गांव से 10-10 कारसेवक तैयार किये. देखते ही देखते 50 लाख कारसेवकों ने मंदिर के निर्माण हेतु अपना सर्वस्व लुटाने की सौगंध खाई. इस निमित्त पूरे देश में संकल्प समारोह आयोजित किए गए.
सरकारी तंत्र के माध्यम से इस जनजागरण को साम्प्रदायिक माहौल में बदलने के उद्देश्य से सत्ताधारियों ने रात-दिन एक कर दिया. मुसलमान भाइयों को उकसाने का काम बाबरपंथी शहाबुद्दीनों, वामपंथी दलों और जनतादल के सहयोगी छिटपुट गुटों और शासन के चाटुकारों ने युद्धस्तर पर शुरु कर दिया.
प्रधानमंत्री राव साहब ने संतों से पुनः बात करने की इच्छा प्रकट की, परन्तु संत अब किसी भी बहकावे में आने वाले नहीं थे. प्रधानमंत्री जी ने कई सरकारी संतों को भेजकर विश्व हिन्दू परिषद के मार्गदर्शक मंडल में फूट डालने का प्रयास किया. इस हेतु मंत्रीमंडल के कई मंत्रियों ने अयोध्या और हरिद्वार में अपने डेरे डाल दिए. परन्तु देश की इस धर्मशक्ति ने ऐसी अद्भुत एकता का परिचय दिया, जिसका उदाहरण देश के गत एक हजार वर्ष के इतिहास में देख पाना कठिन है.
जब वातावरण पूर्ण रूप से राममय हो गया, संतों ने आश्रम छोड़कर अयोध्या की ओर कूच कर दिया. 50 लाख कारसेवक भी तैयार हो गए तो सरकार की निद्रा टूटी. राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक बुलाई गई. यह राष्ट्रीय एकता परिषद भी बड़ी अजीबो-गरीब थी. राष्ट्रीय एकता परिषद की इस बैठक में राष्ट्र और इसकी संस्कृति के घोर दुश्मन भी शामिल थे. मुस्लिम लीग, नेशनल कांफ्रेंस, साम्यवादी दल, खालिस्तान समर्थक अकाली गुट और कई छद्म सैकुलरवादी पत्रकार इस राष्ट्रीय एकता परिषद के सदस्य थे, जिनका राष्ट्र और इसकी एकता के साथ दूर का भी संबंध नहीं था. दूसरी तरफ भारत की राष्ट्रवादी और देशभक्त संस्थाओं यथा : विश्व हिन्दू परिषद, आर्य प्रतिनिधि सभा, सनातन धर्म सभा, मंदिर जीर्णोद्धार समिति, श्रीराम जन्मभूमि न्यास, श्रीराम जन्मभूमि मुक्त संघर्ष और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इत्यादि का एक भी प्रतिनिधि बैठक में नहीं था. इनकी पीठ के पीछे ही चर्चा होती रही.
भारतीय जनता पार्टी ने इस कारसेवा का समर्थन कर दिया. पार्टी के दो शीर्ष नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने क्रमशः श्रीकृष्ण जन्मभूमि और विश्वनाथ मंदिर काशी से अपना जनजागरण अभियान प्रारम्भ कर दिया. इन दोनों नेताओं ने विवादित ढांचे से हट कर कारसेवा करने की बात कही थी. कहीं बाबरी ढांचे को तोड़ने की योजना नहीं थी.
प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने न्यायालय को, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि पर शीघ्र निर्णय देने को नहीं कहा. उन्होंने मुस्लिम नेताओं को भड़काऊ भाषण देने से मना नहीं किया और अपने ही मंत्रीमंडल के सहयोगी अर्जुन सिंह को भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बेलगाम गालियां रोकने से नहीं रोका. बस बार-बार विवादित ढांचे को मस्जिद कहकर हिन्दू और मुसलमान दोनों का अहम जागृत करते रहे. हिन्दू समाज ने इसी को अपने स्वाभिमान का खिलवाड़ समझा, तो भी हिन्दू समाज ने संयम नहीं खोया.
श्रीराम विरोधियों का यह सब अनर्गल प्रचार राम भक्तों के लिए चुनौती बनता चला गया. राममंदिर को तोड़कर उस पर थोपा गया यह बाबरी ढांचा तो 468 वर्षों से हिन्दुओं के वक्षस्थल पर सांप की तरह लोट ही रहा था. परन्तु इस नकली मस्जिद को पाकिस्तान की तरह ही एक ‘सैटल्ड फैक्ट’ मानकर चल रहे राजनीतिक सौदागरों ने तो हिन्दू युवकों की गैरत को ही चुनौती दे दी. उनके भीतर जमा हुआ लावा ज्वालामुखी बनकर फूट निकला.
06 दिसम्बर से 10 दिन पूर्व ही सारे देश से कारसेवकों की टोलियां अयोध्या आनी प्रारम्भ हो गईं. 05 दिसम्बर की रात तक लाखों कारसेवक सरयु के तट पर एकत्रित हो गए. दूसरे दिन प्रातः सरयु के पवित्र जल में स्नान करके, सरयु का जल अंजुलि में भरकर सौगंध खाने वाले इन कारसेवकों के अंतर में लगे बाबरी और रावरी जख्मों को कोई नहीं देख सका. सरयु के जल के साथ प्राणोत्सर्ग के संकल्प की भाषा किसी भी नेता को समझ में नहीं आई. 468 साल के अपमान के बोझ को एक ही झटके से साफ कर देने के इनके इरादों को कोई नहीं पढ़ सका.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं.
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