रामजन्मभूमि संघर्ष इतिहास

@कल्पेश गजानन जोशी

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भारत सहित समस्त विश्व के इतिहास में 5 अगस्त का दिन स्वर्णाक्षरों में संजोया जाएगा. भारत राष्ट्र के चेतना स्थल ‘अयोध्या‘ में श्री राम जन्मभूमि पर भव्य श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि-पूजन होगा. सर्वविदित ही है कि मंदिर निर्माण का मार्ग सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के पश्चात ही प्रशस्त हो गया था. यह मंदिर भारत में सभी जातियों को जोड़कर सभी भारतीयों को एक राष्ट्रपुरुष के रूप में खड़ा करेगा, साथ ही सारे संसार में एकता एवं मर्यादा स्थापित करने का आह्वान भी करेगा. यह मंदिर विशेषतया सभी हिन्दू एवं बौद्ध देशों लिए भारत के साथ जुड़ने का मार्ग भी प्रशस्त करेगा.

तो देखते है, अबतक राम मंदिर के इतिहास का सफर कैसा रहा...

राम जन्मभूमि संघर्ष घटनाक्रम में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 1528 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में भगवान राम के जन्म स्थान पर मस्जिद का निर्माण करवाया और इसी के चलते साल 1528 से लेकर 1731 तक हिंदू और मुसलमानों के बीच 64 बार संघर्ष हुआ। 1822 में फैजाबाद अदालत के मुलाजिम हफीजुल्लाह ने सरकार को भेजी एक रिपोर्ट में कहा कि राम के जन्म स्थान पर बाबर ने मस्जिद बनवाई। 
15 जनवरी 1885 में पहली बार इस जमीन पर मंदिर बनवाने की मांग अदालत में पहुंची। महंत रघुवर दास ने पहला केस फाइल किया था ।  1936 में इस बात की कमिश्नरी जांच की गई की बाबरी मस्जिद क्या सचमुच बाबर ने बनवाई थी?

1950 में हिंदू महासभा के गोपाल सिंह विशारद और दिगंबर अखाड़े के महंत परमहंस ने अदालत में याचिका दायर कर जन्म स्थान पर स्वामित्व का मुकदमा ठोका और दोनों ने वहां पूजा पाठ की इजाजत मांगी। बाद में निर्मोही अखाड़े ने एक दूसरी याचिका दायर कर विवादित स्थान पर अपना दावा जताया और स्वयं को राम जन्म भूमि का संरक्षक बताया । दूसरी तरफ 1961 में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने मस्जिद में मूर्तियों के रखे जाने के विरोध में याचिका दायर की और दावा किया कि मस्जिद और उसके आसपास की जमीन एक कमरा है जिस पर उसका दावा है। इसप्रकार कोर्ट में पक्षकार बढ़ते गए और रामजन्मभूमि का मसला भी गंभीर होता गया। 

1984 में इस विवाद ने गति पकड़ ली। राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनी। रथयात्रा निकाली गई और राम मंदिर आंदोलन ने जोर पकड़ा। 1986 में फैजाबाद की अदालत ने इमारत का ताला खोलने का आदेश दिया और हिंदुओं को पूजा पाठ करने की इजाजत मिली, इसके खिलाफ हाशिम अंसारी ने हाई कोर्ट में अपील दायर की। इसके तुरंत बाद 6 फरवरी 1986 में लखनऊ में मुसलमानों की एक सभा हुई वहां बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी का गठन हुआ और दिल्ली में सैयद शहाबुद्दीन के अध्यक्षता में बाबरी मस्जिद कोआर्डिनेशन कमेटी का गठन हुआ । इसके बाद 1987 के गणतंत्र दिवस समारोह पर बहिष्कार करने का ऐलान तक किया गया। 

दूसरी तरफ जून 1989 मैं पालमपुर में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई जिसमें राम मंदिर बनाने का संकल्प लिया गया। विश्व हिंदू परिषद ने भी धर्म संसद बुलाकर प्रस्तावित मंदिर के शिलान्यास का ऐलान किया। फरवरी 1990 में कारसेवा का ऐलान होने के बाद सोमनाथ से अयोध्या के लिए लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा शुरू हुई। कारसेवक लाखों की संख्या में अयोध्या पहुंचे। भारत के हर गांव और हर शहर से मंदिर निर्माण के लिए ईंटे लेकर कारसेवक आ रहे थे। मुलायमसिंग सरकारने अयोध्या की सुरक्षा बहोत बढ़ाई थी, मानो पंछी को भी प्रवेश मुश्किल हो। बावजूद इसके अयोध्या में लाखो कारसेवक इकट्ठा हो रहे थे। सम्पूर्ण वातावरण "जय श्री राम" की ललकारो से गूंज रहा था। जोशीले वातावरण से प्रभावित होकर 30 अक्टूबर 1990 के दिन रामभक्तों ने बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचे को क्षति पहुंचाई और वहाँ केसरिया झण्डे लहरा दिए।

 इस बीच हुए संघर्ष में मुलायम सिंह की सरकार ने कारसेवकोंपर गोली चलवाई, जिसमें 40 से ज्यादा कारसेवकों की जाने गई और सैकड़ों घायल हुए। यह घटना देश की राजनिती में परिणामकारी साबित हुई। उत्तर प्रदेश सरकार में कल्याण सिंह की सरकार बनी। उन्होंने 2.77 एकड़ विवादित जमीन का अधिग्रहण किया। हिन्दू संतो के साथ प्रधानमंत्री पी.व्ही. नरसिंहराव ने बातचीत की। लेकिन इससे कुछ हल निकलनेवाला नही था। 6 हजार रामभक्तो ने राम मंदिर निर्माण की प्रतिज्ञा कर ली थी। 6 दिसंबर 1992 से पुनः कारसेवा शुरू होने का ऐलान किया गया। करीब सवा लाख कारसेवक नवंबर 1992 में अयोध्या पहुँचे थे। 25 हजार अर्धसैनिक बल तैनात हुई थी। बावजूद इसके बाबरी मस्जिद का शेष ढांचा रामभक्तोद्वारा गिराया गया। 

अप्रैल 2002 में हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने विवादित स्थल पर किसका अधिकार है इस विषयपर सुनवाई शुरू की और 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को खुदाई करने के निर्देश दिए गए। इस बीच 2005 में विवादित स्थल पर आतंकी हमला भी हुआ, जिसमे सुरक्षाबलों ने 5 आतंकियों को मार गिराया। राम मंदिर का विवाद कितना ऊंचा उठ गया था यह इससे पता चल सकता है।

जून 2009 में लिब्राहन आयोग के रिपोर्ट के तहत  इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बांट दिया। हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में रोक लगाई और यथास्थिति बनाए रखने को कहा। इसके बाद तारीख पे तारीख आती गई लेकिन विवाद पर कोई हल निकल नहीं पाया। पूरे देश में राम मंदिर के मुद्दे पर दबाव बनता देख सुप्रीम कोर्ट को 2017 में यह बताना पड़ा कि यह मामला संवेदनशील है। और इसका समाधान कोर्ट के बाहर होना चाहिए सभी पक्षों ने एक राय बनाकर इससे समाधान ढूंढने को कहा। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने सभी 32 हस्तक्षेप अर्जियों को खारिज कर दिया और वही पक्षकार बचे जो इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में शामिल थे।

6 अगस्त 2019 से मध्यस्थता प्रक्रिया नाकाम होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई शुरू की और 16 अक्टूबर को 40 दिन दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा, वह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर 2019 को सुनाया। जिसकी ओर पूरी दुनिया की नजर लगी थी। इस फैसले जे तहत सम्पूर्ण विवादित जमीन राम लला की हुई, मंदिर वहीं बनेगा यह निश्चित हुआ और मुस्लिम पक्ष को मस्जिद के लिए अयोध्या में ही कहीं और 5 एकड़ जमीन दी जाएगी। यह फैसला पूरे भारत में स्वीकार किया गया। जिसका अनुपालन होते हुए 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के हाथों भूमि पूजन हो रहा है। भारत के इतिहास में यह दिन स्वर्णाक्षरों में अंकित होगा।

भारतीय राष्ट्रजीवन के परिचायक और सम्पूर्ण मानवता को राक्षसी आतंकवाद से मुक्त करवाने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मभूमि पर एक भव्य मंदिर का निर्माण हो, करोड़ों हिन्दुओं की यह चिरप्रतीक्षित अभिलाषा अब साकार हो रही है। यह विषय करोड़ों हिन्दुओं सहित उन सभी मजहबों और जातियों के अनुयायियों की आस्था का है, जिन्हें भारत के सनातन उज्ज्वल राष्ट्रजीवन में विश्वास और श्रद्धा है। श्रीराम एक जाति, मजहब और क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं करते। वे तो एक शक्तिशाली एवं संगठित राष्ट्र जीवन के प्रतीक हैं।

©️विश्व संवाद केंद्र, देवगिरी 

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