राष्ट्रीय चेतना का उद्घोष: सनातन संस्कृति की पुनर्प्रतिष्ठापना - १

राष्ट्रीय चेतना का उद्घोष – अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण – 1

सनातन संस्कृति की पुनर्प्रतिष्ठापना

@नरेन्द्र सहगल 

भारत सहित समस्त विश्व के इतिहास में 5 अगस्त का दिन स्वर्णाक्षरों में संजोया जाएगा. भारत राष्ट्र के चेतना स्थल ‘अयोध्या‘ में श्री राम जन्मभूमि पर भव्य श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि-पूजन होगा. सर्वविदित ही है कि मंदिर निर्माण का मार्ग सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के पश्चात ही प्रशस्त हो गया था.

भारतीय राष्ट्रजीवन के परिचायक और सम्पूर्ण मानवता को राक्षसी आतंकवाद से मुक्त करवाने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मभूमि पर एक भव्य मंदिर का निर्माण हो, करोड़ों हिन्दुओं की यह चिरप्रतीक्षित अभिलाषा अब साकार हो रही है. यह विषय करोड़ों हिन्दुओं सहित उन सभी मजहबों और जातियों के अनुयायियों की आस्था का है, जिन्हें भारत के सनातन उज्ज्वल राष्ट्रजीवन में विश्वास और श्रद्धा है.

श्रीराम एक जाति, मजहब और क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं करते. वे तो एक शक्तिशाली एवं संगठित राष्ट्र जीवन के प्रतीक हैं. घर, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व में मर्यादाओं को स्थापित करने वाले श्रीराम को इसीलिए मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है. उनके जन्मस्थान पर जब भव्य मंदिर बन जाएगा तो वह परिवार से लेकर विश्व तक मर्यादा, समन्वय और स्वाभिमान का संदेश देगा.

यह मंदिर भारत में सभी जातियों को जोड़कर सभी भारतीयों को एक राष्ट्रपुरुष के रूप में खड़ा करेगा, साथ ही सारे संसार में एकता एवं मर्यादा स्थापित करने का आह्वान भी करेगा. यह मंदिर विशेषतया सभी हिन्दू एवं बौद्ध देशों लिए भारत के साथ जुड़ने का मार्ग भी प्रशस्त करेगा.

विश्व के कोने-कोने में बिखरे हिन्दू समाज के लिए यह भव्य मंदिर आस्था का एक अद्वितीय तीर्थस्थल होगा. इस सत्य की गहराई को सभी भारतवासियों को अपने जातिगत दायरे से ऊपर उठकर समझ लेना चाहिए कि 5 अगस्त को भारतीयता की पुनर्प्रतिष्ठापना का श्रीगणेश होने जा रहा है. हमारे राष्ट्र एवं समस्त मानवता के सौभाग्य से यह कार्य सभी मजहबों, पंथों एवं संतों की इच्छानुसार भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयानुसार सम्पन्न हो रहा है.

सर्वविदित है कि निरंतर 60 वर्षों तक इलाहाबाद हाईकोर्ट में लटकने के पश्चात जब यह विषय ठोस सबूतों के साथ सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा तो मात्र जमीन के मालिकाना हक का ही  फैसला 8-9 वर्षों में नहीं हो सका. यहां तक भी कह दिया गया कि यह विषय कोर्ट की प्राथमिकता में नहीं है. इस तरह हिन्दुओं की आस्था पर एक प्रचण्ड प्रहार हुआ.

जब सारे देश में हिन्दू समाज ने संगठित होकर अपनी तीव्र प्रतिक्रिया स्वरूप धरनों, प्रदर्शनों और विशाल सम्मेलनों की झड़ी लगा दी तो कहीं जाकर सर्वोच्च न्यायालय ने निरन्तर सुनवाई शुरू करके अंत में ऐतिहासिक तथ्यों और उत्खनन में मिले सबूतों के आधार पर हिन्दुओं के पक्ष में ऐतिहासिक निर्णय दिया. भारतीय स्वाभिमान, अस्मिता एवं संस्कृति के साथ जुड़े 500 वर्ष पुराने बलिदानी संघर्ष का अंत संविधान के अनुसार हो जाना अत्यन्त हर्ष का विषय है.

इतिहास साक्षी है कि एक विदेशी लुटेरे आक्रांता बाबर के आदेश से उसके सेनापति मीरबांकी ने श्रीराम मंदिर को तोड़ कर उसी के मलबे से एक मस्जिदनुमा ढांचा खड़ा करने का मानवता विरोधी कुकृत्य किया था. मीरबांकी को डेढ़ लाख हिन्दुओं की लाशों पर चल कर ही मंदिर को तोड़ने में सफलता प्राप्त हुई थी. तब से लेकर (1528 से) वर्तमान तक हिन्दू समाज अपने आराध्य श्रीराम की जन्मभूमि पर पुनः मंदिर बनाने के लिए अपना रक्त बहा रहा था.

इस मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए 78 बार रक्तरंजित प्रयास हुए. 490 वर्षों के लंबे संघर्ष में साढ़े चार लाख हिन्दुओं ने अपनी कुर्बानियां दी हैं. परन्तु एक दिन भी पराजय स्वीकर नहीं की. प्रतिष्ठा, शौर्य एवं स्वाभिमान की युद्धस्थली अयोध्या के इस वीरव्रती इतिहास की जानकारी सभी भारतवासियों तक पहुंचाने के लिए एक लेखमाला विश्व संवाद केंद्र भारत पर प्रारंभ कर रहे हैं. क्रमशः लेखों का प्रकाशन प्रारंभ होगा.

श्रीराम मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए इतना लंबा संघर्ष इसलिए हो सका कि इसका संबध हमारे राष्ट्र की चेतना के साथ था. यह नाता प्रलय पर्यन्त रहेगा. जिन पवित्र स्थानों के साथ भारत की आस्था जुड़ी है, जिन नदियों के अखण्ड निर्मल प्रवाहों से हमारा राष्ट्रजीवन प्रवाहमान होता है और जिन देवपुरुषों की सतत् तपस्या और बलिदान से भारत की संस्कृति ने समग्रता का आकार लिया है, इन सबकी रक्षा के लिए हिन्दू समाज कभी भी, कहीं भी और किसी तरह का बलिदान देने के लिए तैयार है. 05 अगस्त को होने वाले भूमि पूजन का यह संदेश भी है.

मंदिर निर्माण के इस राष्ट्रीय कार्य को किसी वर्ग विशेष की जय-पराजय नहीं मानना चाहिए. श्रीराम न केवल समस्त भारतवासियों, अपितु समूचे विश्व के आराध्य महापुरुष हैं. उनके अवतरण के समय मानवता का विभाजन हिन्दू-मुस्लिम-इसाई इत्यादि में नहीं था. वे तो मानवता के कल्याण हेतु धरती पर अवतरित हुए थे. आज हम भारतवासियों की पूजा पद्धतियां भले ही विभिन्न हों, परन्तु हम सब एक ही सनातन संस्कृति का प्रवाह हैं. सभी भारतमाता के पुत्र हैं.

अतः 5 अगस्त को जब अयोध्या में भूमिपूजन हो, हम सभी भारतवासी अपने घरों पर प्रसन्नता पूर्वक जय श्री राम का उद्घोष करें और भविष्य में संगठित होकर भारतमाता की आराधना का संकल्प लें.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

©️ विश्व संवाद केंद्र, देवगिरी

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