अयोध्या संघर्षगाथा : 1528 से 1949
1528 ई. अर्थात आज से लगभग 491 वर्ष पूर्व आक्रान्ता बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीर बाकी ने भगवान् श्रीराम का मन्दिर नष्ट करवाकर उसके ऊपर बाबरी ढाँचे का निर्माण करवाया।
दो बार राणा सांगा से मार खाने के बाद बाबर ने हिन्दू संस्कृति के आराध्य श्रीराम की जन्मभूमि से आक्रमण किया और विजयी हुआ । हिन्दू धर्मगुरु श्यामानंद के कथित मुस्लिम फ़कीर शिष्यों–ख्वाजा अब्बास मूसा और जलालशाह ने ही बाबर को हिन्दू श्रद्धा के अभिन्न केंद्र श्रीराम मन्दिर को नष्ट करने की सलाह दी ।
1526 से 1530 तक बाबर ने भारत पर शासन किया लेकिन उस जिहादी आततायी के निशाने पर लगातार भारतीय आस्था के श्रेष्ठ धर्मस्थल ही रहे । सभी स्थलों की रक्षा के लिए हिन्दू समाज ने यथाशक्ति प्रतिरोध किया ।
अंग्रेज इतिहासकार कनिंघम ने उल्लेख किया है कि बाबर के आदेश पर जब मीर बाकी ने तोप से भगवान श्रीराम का मन्दिर नष्ट करवाया तो हिन्दुओं ने कड़ा विरोध व संघर्ष किया जिसमें लगभग 1लाख 23 हजार रामभक्त बलिदान हुए थे ।
उन्मादी बाबर ने श्रीराम मन्दिर के ऊपर उसी निर्माण सामग्री के साथ न केवल बाबरी ढांचा स्थापित करवाया बल्कि साथ ही यह आदेश भी जारी कर दिया कि हिन्दुस्थान के किसी भी सूबे से अयोध्या में हिन्दू का प्रवेश वर्जित होगा ।
अबुल फजल की आईने-अकबरी (1598) अकबर के शासनकाल के प्रशासनिक और वित्तीय मामलों के साथ भगवान राम के महलों और अन्य भवनों का उल्लेख करती है और अयोध्या को हिंदुओं का सबसे प्राचीन और पवित्रम स्थानों में से एक बताती है।
मीर बाकी के प्रशासनिक अधिकारी और इतिहासकार हैमिल्टन ने बाराबंकी के गजेटियर में रामजन्मभूमि के लिए बाबर के समय से लेकर हुमायूँ और अकबरकालीन हिन्दू संघर्ष का पर्याप्त वर्णन किया है ।
अपने आराध्य और इष्टदेव श्रीराम के जन्मस्थल की मुक्ति के लिए हिन्दू समाज का संघर्ष कभी रुका नहीं,इस कारण यहाँ मुस्लिम समाज ढांचा होने के वावजूद कभी नमाज अता करता हुआ नहीं दिखाई दिया । भारतीय मुसलमान ने हमेशा इसे श्रीराम मंदिर ही माना केवल आक्रान्ता व विदेशी मुसलमानों ने इस पर प्रश्न खड़ा किया ।
हुमायूँ के शासनकाल में 1555 ई. तक भी रामजन्मभूमि के लिए बहुत संघर्ष हुआ, हुमायूँ ने जन्मभूमि पर कब्जा करने के लिए अपनी सेना भेजी थी । राजा रणविजय सिंह, महारानी जयराजकुमारी व महेश्वरानंद के नेतृत्व में असंख्य रामभक्तों ने अपने प्राणों की बलि दी ।
अयोध्या में पवित्र ब्रह्मकुंड है जिसके दर्शन करने 1537 में गुरु नानकदेव आये थे । नानकदेव ने यहाँ अकाल पुरुष की आराधना की और अयोध्यावासियों को एक ओंकार के अस्तित्व का उपदेश दिया था ।
यह सत्य सर्वविदित है कि इस काल में अयोध्या में कभी अजान की आवाज भी नहीं सुनायी दी ,साथ ही यहाँ वजू के लिए जरूरी पानी का तालाब भी नहीं मिला ।
हुमायूँ की मृत्यु के बाद 1556 ई. में अकबर गद्दी पर बैठा ।
1580 ई. में अकबर ने अपने साम्राज्य को 12 सूबों में बांटा । इन 12 सूबों में एक अवध था जिसकी राजधानी अयोध्या थी ।
अकबर के समय में भी रामभक्तों ने स्वामी बलरामाचार्य के नेतृत्व में जन्मभूमि की मुक्ति हेतु बीसियों बार मुग़लसेना से संघर्ष किया I
अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के लिए वर्षों से जारी हिन्दू संघर्ष के समाधान के लिए अकबर ने दोनों समुदायों के बीच वार्ता व मध्यस्थता के लिए टोडरमल और बीरबल को भेजा I
टोडरमल और बीरबल ने बहुसंख्य हिन्दू समाज की आस्था का सम्मान करते हुए ढाँचे के निकट राम चबूतरा बनवाकर पूजा की अनुमति दे दी I
जहाँगीर { 1559-1627} और शाहजहाँ [1592-1666 }के शासनकाल में भी रामजन्मभूमि की मुक्ति का संघर्ष पूर्ववत जारी रहा I
अँधेरे का प्रतीक हिन्दू विरोधी जिहादी व क्रूर शासक औरंगजेब { 1618-1707} बाबर की ही प्रतिच्छाया था जिसके काले कारनामे इतिहास में अंकित हैं I औरंगजेब का पहला शाही फरमान ही यह था कि अयोध्या में राममंदिर के खंडहरों और रामचबूतरे को पूरी तरह नष्ट किया जाए I
औरंगजेब की पोती ने (17वीं शताब्दी के अंत में) ‘सफिहा-ए-चहल नसीह बहादुर शाही’ में स्वीकारा है कि बाबरी ढांचे के निर्माण के लिए राम मन्दिर नष्ट किया गया I वह लिखती है-‘‘मथुरा, बनारस और अवध जैसे नगरों के निवासी काफिर हिंदू (मुशरिक हिंदू) के सभी पूजा स्थलों, जिन्हें ये दुष्ट और अपात्र (कुफ्र-ए-नकबार) अपनी आस्था के तहत कन्हैया (भगवान कृष्ण) का जन्मस्थान (मौलाद गाह), सीता की रसोई (भगवान राम से संबंधित), लंका विजय के बाद रामचंद्र द्वारा स्थापित हनुमान गढ़ी के नाम से पूजते रहे थे, को ध्वस्त करके मस्जिदों का निर्माण किया गया ताकि इस्लाम मजहब को मजबूत किया जा सके।’’
किशोर अवस्था में दसवें सिख गुरु और महायोद्धा गुरु गोविन्द सिंह भी अयोध्या आये थे और उसके पश्चात उन्होंने रामजन्मभूमि के लिए कई बार युद्ध किया I
अवध के नवाब शुजाउद्दौला {1754-1775} ने अयोध्या से 3 मील पश्चिम की ओर फैजाबाद नगर बसाया I
1789 में हिन्दू राजा महादजी सिंधिया ने दिल्ली विजय की I अयोध्या में अपने प्रतिनिधि शाह आलम के माध्यम से उन्होंने गोवध पर रोक लगवाई I साथ ही शाह आलम ने मथुरा, वृन्दावन व काशी के तीर्थस्थल हिन्दुओं को सौंपने की घोषणा की I
मिर्जा जान 1855 में वाजिद अली शाह के शासन के दौरान अमीर अली अमेठी के नेतृत्व में हुए जिहाद का चश्मदीद गवाह था उसने ‘हदीस-ए-शोहदा (1856)’ इस जिहाद को जो बाबरी ढांचे से सौ गज की दूरी पर स्थित हनुमान गढ़ी को हिंदुओं से छीनकर उस पर पुन: कब्जा करने के लिए किया गया था।
1853 में रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिए हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच भयंकर संघर्ष हुआ I 1855 में हमुमानगढ़ी विवाद के संघर्ष ने भयावह रूप ले लिया I अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह {1822-1887 }ने इसे हिन्दुओं को सौंप दिया I
नाना फडनवीस के कहने पर शाह आलम श्रीराम जन्मभूमि हिन्दुओं को सौंपने की तैयारी कर रहा था किन्तु अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 के स्वातंत्र्यसमर में दोनों ही देश के लिए समर्पित हो गए जिस कारण यह नेक कार्य नहीं हो पाया I
इसके पश्चात देशभक्त बुद्धिजीवी मुस्लिम अमीर अली खान ने एक बड़े सम्मेलन में मुस्लिम समाज के समक्ष प्रस्ताव रखा कि श्रीराम जन्मभूमि सद्भाव के साथ हिन्दुओं को सौंपी जाए ,”अंग्रेजों की फूट डालो.राज करो” नीति ने इसे सफल नहीं होने दिया I
‘30 नवंबर, 1858 को मोहम्मद असगर और बाबरी मस्जिद के खातिब और मुअज्जन ने बैरागिया-ए-जन्मस्थान के बारे में कानूनी कार्रवाई शुरू करने के लिए एक याचिका दायर की, जिसमें बाबरी मस्जिद को मस्जिद-ए-जन्मस्थान तथा मेहराब और चबूतरे के नजदीक स्थित आंगन को मुकाम-ए-जन्मस्थान कहकर इंगित किया गया है। वे चाहते थे कि बैरागियों ने आंगन में जो चबूतरा बना दिया है, उसे नष्ट किया जाए।
1859 में अंग्रेजों ने जन्मभूमि स्थल पर चारों ओर से तार बाड़ करवा दी और हिन्दुओं व मुसलमानों दोनों के लिए पूजा-अर्चना के लिए अलग-अलग स्थल तय कर दिए I
1877 में सैयद मोहम्मद असगर ने मुतालवी के रूप में फैजाबाद के कमिश्नर को हिन्दुओं को रामजन्मभूमि पर दावा रोकने की याचिका दी,लेकिन हिन्दुओं ने कभी जन्मभूमि पर दावा नहीं छोड़ा I
इस मामले में फैजाबाद के डिस्ट्रिक्ट जज कर्नल एफईए चेमियर ने किसी प्रकार की अनुमति देने से इंकार कर दिया लेकिन साथ ही स्वीकार किया कि “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिन्दुओं के पवित्र स्थल व आस्था केंद्र के ऊपर मस्जिद बनाई जाए I
हिन्दू समाज ने सैकड़ों वर्षों से चल रहे अपने आराध्य श्रीराम को समर्पित इस संघर्ष को थमने नहीं दिया I लगातार रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिए अंग्रेज सेना के साथ 1912 से लेकर 1934 तक संघर्ष जारी रहा I कुल मिलाकर रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिए 76 युद्ध लडे गए I
1934 में रामभक्तों ने बाबरी ढाँचे को नष्टप्रायः कर दिया था,जिसका फैजाबाद के डिप्टी कमिश्नर जे.पी.निकल्सन ने जीर्णोद्धार करवाया था I
1940 से पूर्व अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के इस स्थल को मस्जिद-ए- जन्मस्थान कहा जाता था I
शोध सन्दर्भ -विहिप साहित्य,पांचजन्य / ऑर्गनाइजर प्रो. मक्खनलाल,श्री तरुण विजय व श्री नरेंद्र सहगल जी के लेख
ऐतिहासिक विवरण
1634 में थॉमस हरबर्ट अयोध्या आये थे ,उन्होंने अयोध्या में पंडितों के द्वारा श्रीरामधुन व स्तुति का वर्णन किया है,किसी मस्जिद का उल्लेख उनके विवरण में नहीं है I विलियम फिंच अयोध्या आए थे। उन्होंने रामकोट के खंडहरों के अस्तित्व की पुष्टि की है, जहां श्रीराम का जन्म हुआ था I
38 वर्ष तक भारत में रहने वाले जोसेफ टेफेन्थैलर (1710-1785) अस्ट्रियाई मूल के यूरोपीय मिशनरी पादरी थे, लैटिन भाषा में लिखी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऐंड ज्योग्राफी ऑफ़ इंडिया’ में उन्होंने जो विवरण अंकित किया है इसमें अयोध्या का भी वर्णन है।
फ्रांसीसी विद्वान जोसेफ बर्नौली ने 1786 में टेफेन्थैलर की पुस्तक का फ्रेंच अनुवाद प्रकाशित किया था। इसमें प्रस्तुत तथ्य ब्रिटिश दस्तावेजों विशेषकर 1838 में मोंटगोमरी मार्टिन द्वारा राम जन्मभूमि मंदिर के संबंध में प्रस्तुत ब्योरों के मुकाबले ज्यादा प्राचीन हैं।
‘मंदिर-मस्जिद स्थल’ के बारे में टेफेन्थैलर लिखते हैं: ‘‘बादशाह औरंगजेब ने रामकोट नाम के एक किले को नष्ट कर दिया और उसी स्थान पर तीन गुंबदों वाला एक इस्लामी ढांचा बनाया I”
1838 में ब्रिटिश सर्वेक्षक मांट गोमेरी मार्टिन ने लिखा कि बाबरी ढाँचे में जो स्तम्भ थे वे हिन्दू मंदिर से लिए गए थे I
ऐसे अनगिनत स्रोत हैं जिनमें बार-बार अयोध्या का उल्लेख किया गया है, जहां राम जन्मस्थान और अन्य मंदिरों को नष्ट करके ‘मस्जिदों’ का निर्माण करवाया गया।
उनमें से कुछ इस प्रकार हैं - ब्रिटिश सर्वेयर मोन्टगोमेरी मार्टिन की रिपोर्ट ‘बाई मोन्टगोमेरी मार्टिन(1838)’, एडवर्ड थर्नटन का ‘ईस्ट इंडिया कंपनी गजेटियर (1854)’, पीक़ार्नेगी का ‘हिस्टोरिकल स्केच ऑफ़ फैजाबाद (1870)’, ‘गजेटियर ऑफ़ दि प्रोविन्स ऑफ़ अवध (1877)’,‘फैजाबाद सेटलमेंट रिपोर्ट, (1880)’, ‘इंपीरियल गजेटियर ऑफ़ इंडिया (1881)’, कर्नल एफ़ ई़ ए़ चमियर, जिला न्यायाधीश, फैजाबाद की ‘कोर्ट वर्डिक्ट(1886)’, ए़ फ्यूहरर की ‘आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया रिपोर्ट (1891)’, एच़ आर नेविल का ‘बाराबंकी डिस्ट्रिक गजेटियर (1902)’, एच़ आर नेविल का ‘फैजाबाद डिस्ट्रिक गजेटियर (1905)’और ‘आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया रिपोर्ट (1934)’।
स्रोत – पूर्ववत
अयोध्या का इतिहास
औरंगजेब की पोती ने भी स्वीकारा
सीता की रसोई, रामचंद्र द्वारा स्थापित हनुमानगढ़ी जैसे पूजा स्थलों को ध्वस्त करके मस्जिदों का निर्माण किया गया ताकि इस्लाम मजहब को मजबूत किया जा सके।
हुमायूँ के शासनकाल में 1555 ई. तक भी रामजन्मभूमि के लिए बहुत संघर्ष हुआ, हुमायूँ नेजन्मभूमि पर कब्जा करने के लिए अपनी सेना भेजी थी I राजा रणविजय सिंह, महारानीजयराजकुमारी व महेश्वरानंद के नेतृत्व में असंख्य रामभक्तों ने अपने प्राणों की बलि दी
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