राष्ट्रीय चेतना का उद्घोष : अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण – 10
श्रीगुरु गोबिन्दसिंह और बाबा वैष्णवदास का रणकौशल
-नरेंद्र सहगल-
अत्याचारी शासक और हिन्दू संहारक औरंगजेब ने अपने एक दुर्दांत सेनापति जांबाज खान को मुगल सेना के साथ अयोध्या की ओर कूच करने का हुक्म दे दिया. औरंगजेब की इन हिन्दुत्व विरोधी विनाशकारी चालों से हिन्दू संत महात्मा भी अनभिज्ञ नहीं थे. अयोध्या के पास ही सरयू नदी के अहिल्या घाट पर एक महात्मा बाबा वैष्णवदास एक आश्रम बनाकर हिन्दुत्व के प्रचार प्रसार में लगे थे. इस मठ को उन्होंने शक्ति का केन्द्र बनाने के उद्देश्य से चिमटाधारी साधुओं का एक सशक्त संगठन खड़ा कर दिया. 10 हजार से भी ज्यादा फक्कड़ चिमटाधारी साधुओं की सेना तैयार हो गई. जांबाज की आधी सेना को सरयु नदी पार करते ही बाण वर्षा से समाप्त कर दिया. शेष जो नदी पार करके किनारे लगे उन्हें चिमटाधारी साधुओं ने घेर कर समाप्त करना शुरु किया. कुछ ही घंटों में जांबाज की सारी फौज का सफाया हो गया.
अब औरंगजेब ने एक और मुगल सरदार सैयद हसन अली के नेतृत्व में साठ हजार के फौजी लश्कर को राममंदिर को पुनः भ्रष्ट करने के लिए भेजा. औरंगजेब की सभी योजनाएं, उसकी रणनीति, उसकी सेना की क्षमता और आक्रमण का स्थान तिथि इत्यादि की जानकारी स्वामी वैष्णवदास के पास पहुंच रही थी. इस कुशल राजनीतिज्ञ सन्यासी ने सैयद हसन अली का सामना करने की पूरी तैयारी कर ली.
इन दिनों खालसा पंथ के संस्थापक श्रीगुरु गोविन्द सिंह जी महाराज अपने दलबल के साथ पंजाब में मुगलों के साथ लोहा ले रहे थे. हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले इस महापुरुष ने खालसा पंथ की स्थापना करते समय पूरे राष्ट्र की संस्कृति और मानबिंदुओं की रक्षा का बीड़ा उठाया था. श्रीराम को वह अपने वंश का पूर्वज मानते थे.
स्वामी वैष्णवदास ने श्रीगुरु गोविन्द सिंह से सम्पर्क स्थापित करके इनसे राममंदिर की रक्षा हेतु तुरंत अपने सैन्यबल सहित आने की प्रार्थना की. इस समय श्रीगुरु गोविन्द सिंह आगरा में मुगलों के दांत खट्टे कर रहे थे. श्रीराम जन्मभूमि पर आक्रमण की बात सुनकर उनका ललाट सूर्य की भांति तेजोमय हो गया. सूर्यवंशी राम के वंशज इस राष्ट्रीय महापुरुष की भृकुटि तन गई. अपने सम्पूर्ण सैन्यबल के साथ तुरन्त अयोध्या की ओर कूच कर दिया. ब्रह्मकुंड नामक स्थान पर बाबा वैष्णवदास से इनकी ऐतिहासिक भेंट हुई. दोनों ने मुगलिया फौजी लश्कर को तोपखाने सहित पूर्णतया समाप्त करने की रणनीति बनाई.
अयोध्या के पास एक बड़े कसबे रुदौली में राजपूत क्षत्रियों के एक दल ने हसन अली की सेना का रास्ता रोककर दो तरफ से हमला कर दिया. हिन्दू सेना बाज की तरह झपटी और मारधाड़ करके पीछे हट गई. यही तय था. मुगल सेना को आगे बढ़ने का रास्ता दे दिया गया. जैसे ही यह फौज अयोध्या से केवल दस कोस दूर सदातगंज नामक स्थान पर पहुंची, सिक्ख बहादुरों के अनेक जत्थों ने खेतों में से निकलकर मुगल सेना को चारों ओर से घेर लिया. तीरों और तलवारों के भीषण प्रहारों से हसन अली की मुगलिया फौज के परखच्चे उड़ गए. तौबा-तौबा करते हुए मुगल सैनिक दुम दबाकर भागने लगे. ठीक इसी समय खेतों में से निकलकर सिख वीरों के जत्थों ने इन्हें अपने बरछों (शूल) से यमलोक का रास्ता दिखा दिया. मुगलों के तोपखानों पर सिख सैनिकों ने अधिकार कर लिया.
हसन अली सहम गया. वह अपने शेष बचे सैनिकों के साथ भाग खड़ा हुआ. जालपा बीहड़ के पास बाबा वैष्णवदास के चिमटाधारी साधु इसकी प्रतीक्षा में थे. इन साधुओं ने अपने चिमटों से पीट-पीट कर उसे यमलोक पहुंचा दिया. इसके साथ भगौड़े साथियों को भी इन साधुओं ने मार डाला. इस प्रकार श्रीगुरु गोविन्द सिंह और बाबा वैष्णवदास के अनूठे युद्ध कौशल से एक भी मुगल सैनिक मंदिर के पास नहीं पहुंच सका. औरंगजेब तो इन पराजयों से दांत पीसता रह गया.
औरंगजेब ने अपने द्वारा लिखित आलमगीरनामे के पृष्ठ 623 पर इस पराजय को स्वीकार किया है -‘बाबरी मस्जिद के लिए काफिरों ने 30 हमले किए. लापरवाही की वजह से शाही फौज ने शिकस्त खाई. आखिरी हमला जो गुरु गोविन्द सिंह और बाबा वैष्णवदास का हुआ, उसमें शाही फौज का सबसे बड़ा नुकसान हुआ. इस लड़ाई में शहजादा मनसबदार हसन अली खान भी मारा गया.’ पंडित रामगोपाल पांडे ने अपनी पुस्तक श्रीराम जन्मभूमि का ‘रक्तरंजित इतिहास’ के पृष्ठ 54 में लिखा है ‘औरंगजेब के समय बाबा वैष्णवदास ने 30 आक्रमण जन्मभूमि के उद्धारार्थ किए. इन आक्रमणों में सराय, सिसिंडा, राजेपुर, नारे, श्रेथू इत्यादि इलाके जो अयोध्या के पूर्व की ओर आबाद हैं, के सूर्यवंशी क्षत्रियों ने पूर्ण सहयोग दिया. उपरोक्त सैनिक अभियान में ठाकुर जगदम्बा सिंह और उसके सैनिकों ने बड़ी बहादुरी से युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त हुए.
राम मंदिर में अकबर द्वारा बनवाया गया राम चबूतरा औरंगजेब की आंख में खटकता रहा. बाबर द्वारा बनवाई गई नकली मस्जिद में लगाए गए सभी हिन्दू चिन्हों को वह बर्दाश्त नहीं कर सका. उसे यह भी पसंद नहीं था कि मुसलमान तो वहां नमाज के लिए जाते ही नहीं, वह अभी भी इसे मंदिर ही मानते हैं और नियमित रूप से पूजा वंदना कर रहे हैं. अतः इस मंदिर को पूर्णतया भूमिसात करने के उद्देश्य से उसने फिर मुगलिया सेना को अयोध्या भेजना शुरु किया. निकटवर्ती हिन्दू राजाओं ने संगठित रूप से प्रतिकार करते हुए औरंगजेब की सब चालों को विफल कर दिया.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं.
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