दीप अमावस्या

सनातन धर्म की एक अत्यन्त उज्वल परम्परा  रही है कि जीवन जीने में जो भी चल - अचल वस्तु, व्यक्ति, निसर्ग यहाँ तक कि  पशु भी, साहयक है तो काल गणना के अनुसार आने वाली विशेष तिथी पर उन सभी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए । इसिलिए उत्तर भारत में गोवर्धन, पश्चिम और दक्षिण भारत मे बैल पुजन किया जाता है। 

इसी श्रृखला में आज अर्थात आषाढ माह की अन्तिम तिथी अमावस्य है जिसे सम्पूर्ण महाराष्ट्र में 'दीप अमावस्या' के नाम से जाना जाता है, चूकिं छोटा सा दीप हमे सूर्य की अनुपस्थिति मे अंधकार को दूर भगाकर प्रकाश की उपलब्धता करवाता है साथ ही वह अग्नि का धारक भी है अत: दीप अत्यन्त पूजनिय है।

इसिलिए आज सम्पूर्ण महाराष्ट्र में दियों की पुजा का विधान है। गृहणिया घर में रखे हुए सभी दियों को स्वच्छ कर उनकी पुजा करती है तथा नैवेद्य,पिले फूल एवम् दूर्वा अर्पित करती है। 

शास्त्रो के अनुसार दिपक के तेज को उत्तम तेज माना गया है  ‘‘दीप सूर्याग्निरुपस्त्वं तेजसां तेज उत्तमम्‌ | गृहाण मत्कृतां पूजां सर्वकामप्रदो भव॥"

अर्थात्  हे दीप आप में सूर्य और अग्नि का स्वरूप समाहित है अत: आप सारे तेजो (प्रकाश) से सर्वश्रेष्ठ तेज है, मेरी पुजा स्वीकार कर मुझे अनुग्रहीत करे ।कृतघता का यह भाव सनातन धर्म की स्वस्थ परम्पराओं का एक श्रेष्ठ उदाहरण है। 

उत्तर भारत में विक्रम सम्वत् का अनुसरण किया जाता है। अत: वहाँ आज की अमावस्या श्रावण की हरियाली अमावस्या मानी जाती है और भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पुजा की जाती है।

आज सोमवार भी है अत: इसे सोमवती दीप / हरियाली अमावस्या भी कहा जाता है। आइए सनातन धर्म की उज्जल परम्परा का निर्वहन करते हुए सकारात्मक भाव से दीप ज्योती को सहृदय नमन करते है।

दीप अमावस्या की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं

©️ विश्व संवाद केंद्र, देवगिरी

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