त्याग और समर्पण का मूर्तिमंत उदाहरण - स्व. बालासाहबजी नाइक

श्री बालकृष्ण उत्तमराव और श्री बालासाहब जी नाइक का 19 नवंबर 2020 को निधन हुआ । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक श्री बालकृष्ण जी उत्तमराव ने  एक छोटी सी बीमारी के चलते हुए उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में अन्तिम सांस ली। वह 79 वर्ष आयु के थे। 

बाला साहेब, बचपन से ही संघ के स्वयंसेवक थे, फुलम्ब्री (संभाजीनगर - औरंगाबाद) के  रहने  वाले बालासाहब के  पिता एक प्रसिद्ध वकील थे। बालासाहेब, एक अत्यत कुशाग्र  विद्यार्थी थे , उनकी शिक्षा संभाजीनगर के प्रसिद्ध सरस्वती भुवन शिक्षण संस्थान में हुई थी।  उन्होंने अपनी स्नातक शिक्षा गवर्नमेंट साइंस कॉलेज, संभाजीनगर और फर्ग्यूसन कॉलेज, पुणे में की।

बालासाहेब ने आगे की शिक्षा के लिए गुजरात के मोरवी इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया।  बालासाहेब इंजीनियरिंग में उच्च अध्ययन करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका गए जहाँ उन्होंने 1963 में अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से 15 महीने  के एम.एस. कोर्स को 11 महीने में पूरा कर लिया था। अपनी  उच्चशिक्षा पूरी करने के पश्चात्  बालासाहेब ने संयुक्त राज्य अमेरिका में एक शोध संस्थान में अनुसंधान इंजीनियर के रूप में काम किया। एक विकसित देश में श्रेष्ठ वेतन के साथ अपना जीवन यापन कर रहे थे  परंतु उनके हृदय  में राष्ट्र के प्रति और हिंदुत्व के प्रति दबी हुई भावनाएं उन्हे  बेचन कर रही थी जिसके परिणाम स्वरूप उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर भारत आने का फैसला लिया और सिधे नागपुर संघ मुख्यालय जा पहुंचे । 

नागपुर में प्रशिक्षण के पश्चात, बालासाहेब ने 1966 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक के रूप में जाने का फैसला किया और इसकी शुरुवात महाराष्ट्र के  परभणी में प्रचारक के रूप में हुई ।  बालासाहेब के सहज गुणों और संगठनात्मक कौशल को ध्यान में रखते हुए, उन्हे संघ काम के लिये बंगाल भेजा गया । 1974 से बालासाहेब ने बंगाल में अपना काम शुरू किया।  थोड़े ही समय में, वह बंगाल में कस्तोदा (बालकृष्ण) के नाम से लोकप्रिय हो गये। बंगाल में अपने 23 के कार्यकाल के दौरान बाळासाहब ने प्रत्येक क्षेत्र मे संघ के कार्यों को पहुंचायाँ ।
  
बालासाहेब तथागत भगवान गौतम बुद्ध के विचारों से प्रभावित थे। वह बौद्ध दर्शन के एक जिज्ञासु  विद्यार्थी एवमू अभ्यासक  थे। बुद्ध विचारो प्रभाव के कारण, बालासाहेब ने समन्वय मंच नामक एक मंच बनाया।  बालासाहेब ने समन्वय मंच के माध्यम से बौद्ध विचार के प्रसार के लिए एक विशेष बौद्ध प्रदर्शनी का आयोजन किया था।  बालासाहेब इस विषय पर कई संतों, महंतों और बौद्ध भिक्षुओं के साथ चर्चा करते थे। उन्हे विपश्यना साधना के महान उपदेशक व साधक  श्री सत्यनारायण जी गोयनका से विशेष लगाव था। वे श्री रामकृष्ण मिशन से भी जुड़े थे।

विवेकानंद के विचारों से प्रेरित  को विश्व हिंदू परिषद के काम की जिम्मेदारी दी गई थी, अब वे स्वामी विवेकानन्द  जन्मस्थान से विश्व हिन्दू परिषद  काम कर रहे थे।  बालासाहेब के अथक परिश्रम से शुरू हुए समन्वय मंच के कार्यों के परिणाम दिखने लगे थे।  बौद्ध दर्शन में समकालीन व्यक्तियों को संघ के काम से जोड़ा गया था।  विश्व हिंदू परिषद के लिए काम करते हुए, उनका लक्ष्य अपने जीवनकाल में अयोध्या में राम मंदिर को पूरा करना था।  बालासाहेब, जो गौतम बुद्ध के सिद्धांतों का पालन करते हुए अपने पूरे जीवन हिंदू-बौद्ध सद्भाव के लिए काम करते रहे हैं, को अपनी अंतिम सांस गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में उसी क्षेत्र में लेनी चाहिए, जहां कुशीनगर तथागत भगवान गौतम बुद्ध का निवास था।

स्व. बालासाहब जी का संपूर्ण जीवन हमे निरंतर प्रेरणादायक रहेगा... उनके व्यक्तित्व के प्रति त्रिवार नमन..! 

©️ विश्व संवाद केंद्र, देवगीरी 

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